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Gandhi Ke Marnoprant, a Hindi Poem by Kalpana Singh



 

गांधी के मरणोपरांत गांधी, कोई उड़ा ले गया तुम्हारे शब्द, हे राम! कोई चुरा ले गया तुम्हारी बकरी कर दी उसे हलाल

कोई ले गया तुम्हारी लाठी देश के सीने पर खींचने के लिए विभाजन की कुछ और रेखाएं

कोई ले गया तुम्हारी चप्पल कर दी उसे नीलाम! दिशाविहीन भागता है तुम्हारा देश नंगे पांव

गांधी, कोई ले गया तुम्हारे गांव, तुम्हारी गीता, तुम्हारे राम की सीता!

कोई ले गया तुम्हारा चरखा, तुम्हारी सूत,

देश के गले में फेंकी जाने वाली

एक रस्सी को बुनने कोई फाड़ ले गया तुम्हारी किताबों का एक-एक पन्ना, लगाने को एक आग तुम्हारे देश के जले भाग्य!

गांधी, कोई ले गया तुम्हारा गमछा, तुम्हारी धोती देश के कफ़न के लिए उसकी आत्मा के तर्पण के लिए कोई ले गया तुम्हारी साबरमती!


(महात्मा गांधी की पुण्य तिथि पर उन्हें समर्पित एक कविता) ~ कल्पना सिंह

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