दंगाई (हिंदी कविता) - कल्पना सिंह दंगाई
दंगाई, दंगाई, दंगाई!
कौन है यह दंगाई?
कोई कहता है —
उसके हाथ मे होता है लोटा
और मुँह में पान।
तो कोई कहता है —
उसके मुँह में होता है राम
और बगल में छुरी।
हे राम! हे राम! हे राम!
यह दंगाई आखिर रहता कहां है?
कोई कहता है —
वह मीनारों में छुप कर रहता है
और वहीं से निशाना साधता है।
तो कोई कहता है —
वह इतिहास के पन्नों में सोता है
और जब जागता है, मीनारों को ढाहता है।
या ख़ुदा! या ख़ुदा! या ख़ुदा!
यह दंगाई आता कहाँ से है?
कोई कहता है —
वह आता है सीमा के पार से
और रखता है खंजर और ढाल।
सत श्री अकाल! सत श्री अकाल! सत श्री अकाल!
पर ध्यानमग्न कोई कहता है —
वह सबके मन में रहता है
और दिन रात जलता है
अज्ञानता और प्रतिशोध की अग्नि में।
नमो बुद्धाय! नमो बुद्धाय! नमो बुद्धाय!
दंगाइयों का जन्म कैसे होता है?
दंगाइयों का जन्म होता कैसे है
यह माएं नहीं जानतीं।
दंगाई माँ की कोख से पैदा नहीं होते।
वे साम्राज्य और सत्ता पिपासुओं के
वीर्यपात के कीचड़ में गिरने से पैदा होते हैं।
साम्राज्यवादी, सात समुन्दर पार से आते हैं,
सातों महाद्वीपों पर अपना डेरा डालते हैं
और इंसानों को बांटते हैं।
ओ मसीहा! ओ मसीहा! ओ मसीहा!
और जो होते हैं सत्ता के भोगी,
देश होता है उनके लिए गधा, और वे होते हैं धोबी।
वे स्वर्ग का सुख सात पातालों में छुपकर भोगते हैं,
और पुश्त दर पुश्त जनता पर शासन करते हैं।
हे माँ भारती! हे माँ भारती! हे माँ भारती!
यह दंगाई कैसी भाषा बोलता है?
दंगाइयों की कोई भाषा नहीं होती
वह इशारों में बातें करता है
और भ्रमित लोगों को
अपनी उँगलियों पर नचाता है।
उसके इशारों पर नाचने वाली कठपुतलियां
नाना प्रकार के गीत गाती हैं
और मंचों पर चढ़ कर उत्तेजक भाषण देती हैं।
हे माँ शारदे, हे माँ शारदे, हे माँ शारदे !
यह दंगाई आखिर दिखता कैसा है?
दंगाइयों की कोई सूरत नहीं होती,
वह हवा में अदृश्य पिशाचों की तरह डोलता है
और भूत की तरह धरती पर उल्टे पाँव चलता है। वह शहर के शहर, गांव के गांव, गोद की गोद उजाड़ता है
और खून की नदियां बहाता है! त्राहिमाम! त्राहिमाम! त्राहिमाम! दंगाई, मेरे भाई, मेरे घर को छोड़ने का तुम क्या लोगे? © कल्पना सिंह कवि परिचय
कल्पना सिंह के हिंदी काव्य-संग्रहों में बिहार राजभाषा परिषद से पुरस्कृत “चाँद का पैवंद”, “तफ़्तीश जारी है” और “निशांत” के नाम उल्लेखनीय हैं। कल्पना सिंह की कविताओं का प्रकाशन हंस, पहल, साक्षात्कार, वर्तमान साहित्य, दस्तावेज़, धर्मयुग, कादम्बिनी, बहुमत तथा विश्व की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में हुआ है. इनकी रचनाओं का अनुवाद देश-विदेश की कई भाषाओं में किया गया है। बुद्ध की धरती गया में जन्मी कल्पना सिंह ने मगध विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एम. ए. की शिक्षा प्राप्त की, और कुछ समय के लिए गया कॉलेज, गया, में अध्यापन कार्य भी किया। १९९४ में अमेरिका आने के बाद इन्होंने “न्यूयॉर्क फिल्म अकादमी” से फिल्म निर्देशन की शिक्षा हासिल की, और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (HarvardX) से, “Buddhism Through Its Scriptures” का भी अध्ययन किया। अंग्रेजी में कल्पना सिंह-चिटनिस के नाम से ख्यात इनके काव्य संग्रह “बेयर सोल” को २०१७ में लेबनान के “नाजी नामन लिटरेरी प्राइज फॉर क्रिएटिविटी” से सम्मानित किया गया। कल्पना सिंह अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिका “लाइफ एंड लेजेंड्स” और "हिंदी लिटरेचर टुडे" की प्रवर्तिका तथा प्रमुख संपादिका हैं और वर्तमान समय में अपने हिंदी काव्य संग्रह "जो तुम हो वही हूँ मैं," अंग्रेजी काव्य संग्रह "ट्रेसपासिंग माई एंसेस्ट्रल लैंड्स" तथा केदारनाथ सिंह की कविताओं पर अनुवाद कार्य कर रही हैं। हॉलीवुड में फिल्म निर्देशिका के रूप में कार्यरत कल्पना सिंह बोधगया और लॉस एंजेलिस के बीच अपना समय बांटती हैं। संपर्क – hindiliteraturetoday(at)gmail (dot)com
"भारत ऑब्जर्वर पोस्ट" में पूर्व प्रकाशित (१८ फ़रवरी २०२१) Please comment below.
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